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KISSE - KAHANIYA

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सफाई

चाहते समेटी नहीं जा रहीं, इलज़ाम महंगाई पर दे देते हैं कभी बीमारी दवाई पर दे देते हैं कभी यारो! लुगाई पर दे देते हैं हम कब सुधरेंगे, कब आंखे खुलेगी कब राज़ जानेंगे, कब बात बनेगी "गंदगी कौन करता है" जानना ही नहीं चाहते फिर इल्ज़ाम सरकार और सफाई पर दे देते हैं ~ शिवम् शब्दांश

प्रकृति "प्रेम" जीवन प्राप्ति

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मैं जाग रहा हूं मैं भाग रहा हूं मैं शांत दिखा हूं पर आग रहा हूं मैं बंदी हूं मैं द्वंदी हूं मैं अंत मेरा मैं व्यंग्यी हूं मैं अभिलाषा हूं मैं जिज्ञासा हूं मैं सबल दोस्त! मैं अव्वल हूं मैं कृत्रिम हूं मैं रक्तिम हूं मैं श्रोता दोस्त! मैं अंतिम हूं मैं, मैं, मैं, मैं....थोड़ा रुक जाते हैं ना, एक क्षण, एक सतह पर । *प्रकृति के प्रवाह को देख तुम्हारा जी नहीं ललचाता* कि कहां फ़सें पड़े हो - नासमझी से बस व्यर्थ ही नाश कर रहे हो अपने और तुमसे जुड़े सभी के जीवन का; तुम्हें नहीं लगता के तुम्हे देखना चाहिए के वास्तव में जीवन क्या है, कितनी लीलाएं हैं, *मनुष्य देह को कितनी ऊर्जा प्रकार अपनी ओर आकर्षित करते हैं*, इतनी सौम्य समझ से अभिलक्षित हैं हम फिर भी । कितना प्यार देता है हमें हमसे परे हमारा इक अनन्य परिवार । कितना ओज से भरा कितना तेज से एकीकृत, कितनी सच्चाई, शांति और श्रद्धा से परिपूर्ण । ये जिसकी *गोद में बैठ हमें अपने हर एक क्षण को आनंद से* भरना चाहिए, हमें महसूस करना चाहिए वो पल वो आभा वो चहक जो मंत्रमुग्ध करती है हमें, उसकी ओर हमारा ध्यान तलक नहीं जाता (प्रकृति) । कोई भला इतना अनभिज्ञ, इतना लापरवाह कैसे हो सकता है सोचा है कभी तुमने, तुम्हारी तरह की ऊर्जा बनकर मनुष्य देह बनने में तुम्हें कुछ पता है कितना वक्त लगता है, दोस्त! आंखे खोल अब कुछ बोल चल घर चलते हैं असल जीवन जीते हैं अहम वहम का त्याग कर हर बला को आग कर धरती से तू बोल दे वक़्त तुझे कुछ मोल दे प्रकृति की गोद में खेलना है असल ममता से मिलना है उसके आंगन का सदा पुजारी रहेगा इसके लिए उसका सदा आभारी रहेगा #शिवम् "शब्दांश"

नींद गई मायके

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"नींद" गई मायके होना क्या था, समय चित पड़ा, हम पट पड़े, मगर नींद कमबख्त आने से रही, अब हमारा भी स्वाभिमान है भइया, हमारे घंटे से है आओ चाहे बनी रहो "मायके" । आएगी यही कोई "साढ़े चार बजे" मानो इसकी मनमानी चलने देंगे हम, ये गुल खिलाएगी और हम देखते चलेंगे, जब मन करे आयेगी जब मन करे चली जाएगी, कोई खेल है क्या? चाहते तो हम भी है धर पकड़ दे चमाट ढेर कर देना, अपनी व्यथा को हिंसात्मक भाषा में कहना, दर्द को प्यार बता देना, आंसुओं से चाह दिखा देना, मगर क्या करें - कुछ कर भी तो नहीं सकते! आवारा है सुनती कहां है अपने आगे । किसी की एक नहीं चलने देती । हम तो मानो बस उसके लिए इक कठपुतली हैं जब चाहे बटन दबाया नचा लिया, जब चाहा गर्दन मरोड़ दी । खैर भइया जग कुछ नहीं कर सका तो हम किस खेत की मूली हैं। अब वो "नींद" हैं उसका राज है। हम तो ठहरे परदेशी, चार दिन के मेहमान "कौन जोखिम उठाए" चलो जैसा भी मिला है जीवन "दोस्त! बस जिया जाए" ~ शिवम् "शब्दांश"

रात जागा मैं

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के जब जब रात जागा मैं तब तब मेरे साथ जागा मैं यक़ीनन और अफवाहें थी अकेले ही मेरे साथ भागा मैं मोहब्बत और हुजूम भी था जग जीतने का जुनून भी था सवा मन आसरे थे, पर फासले थे उनकी तरफ तो बहुत थे, काफिले थे जब तक आमिर था, मुसाफिर था भोर के चार बजे, काफिर था जगह दी गई, के बचा सकते हो तो बचा लो जिधर चाहो "जान" छिपा लो इधर नज़ारा भयंकर था उधर आसरा समंदर था समंदर में आग, आगा मैं फिर "अकेले ही मेरे साथ भागा मैं" *~ शिवम् "शब्दांश"*

और अगर हो गया हो

और अगर हो गया हो मन तुम्हारा सो गया हो मुश्किल में वक्ता हो दाम तले दबता हो महज़ नाम का सिपाही हो बेबुनियादी स्याही हो दिन में तारे बातों में जन्नत दिखाता हो मन्नत के नाम हसरत पूरी कर जाता हो तो कहो! मुझे देख लेने को दे दो सब सहेज लेने को फिर देखो कैसे ईद का चांद दिखाता हूं धरती पर फिर कैसे 72 हूर लाता हूं यूं बात बात पर, भागा न करो लपेटा करो ज़बान, तागा न करो दबते हो तभी दबा दिए जाते हो किसी आड़ में सता लिए जाते हो कचरा है रौंद कर निकल जाया करो जिस काम निकले घर से, पूरा कर सीधा घर ही जाया करो । ~ शिवम् शब्दांश

मैं गधा हूं

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मैं बड़ा हुआ तब पता लगा मैं पहले भी गधा था मैं अब भी गधा हूं । पहले स्कूल और जरूरत फिर कॉलेज और जरूरत फिर कंपनी और जरूरत फिर व्यापारिक सिस्टम और जरूरत फिर रिश्ते और जरूरत फिर जरूरत ही जरूरत फिर उम्र और जरूरत फिर आखिर और जरूरत । भाई साहब! सिर्फ मालिक बदलते हैं.. ~ शिवम् "शब्दांश"

हक़ और जातीय राजनीति

विरोध होता है पाखंड राज में, जाति से जाति तोली जाती है रंगों की होली में भेद बताकर, "रासलीला" में साथ खेली जाती है लौट आओ बैरंग, लाज बचाना है गर देख लो, ठीक लगे, आज बचाना है गर मैं कहता हूं अब "कर्मवाद" को बढ़ावा मिलना चाहिए स्वच्छता से कार्य करने वाले "कार्मिक" को चढ़ावा मिलना चाहिए ~ शिवम् "शब्दांश"

इज्जत ❌ आज़ादी ✅

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*पहले जबरदस्ती होने वाले कृत्य,* *आज ऑफर किए जाते हैं।* "जिस चीज़ को बचाने के लिए आजादी के रास्ते जाने कितने सूरमाओं ने अपनी बलि चढ़ा दी, वही चीज़ आज आजादी के नाम पर खुलेआम परोसी जाती है" अब और कितना बदलाव चाहिए; वक़्त के साथ बदलना चाहिए, बोलने वालों ने वक्त को ही बदल दिया ।। ~ शिवम् "शब्दांश"

प्यार 💔

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अगर तुम पहले नहीं हो तो आखिरी हो सकोगे; इसकी उम्मीद रखना भी "फ़िज़ूल" ही समझना ।। ~ शिवम् "शब्दांश"

नाम के अपने

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फायदे में रहना चाहते हो तो सुनो! अपनों की दुनिया में फैलाए रहो के घाटे में हो तुम ।। ~ शिवम् "शब्दांश"

राजा "आम"

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फलों का राजा आम होता है मगर ध्यान रहे "चूसकर फेक दिया जाता है" इस गुमान में ना रहें के आप राजा हैं ~ शिवम् "शब्दांश"*l

बच्चा ज्यादा अच्छा

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जहां बड़े होने पर सम्मान न प्राप्त हो सकें; वहां फिर बच्चा बन जाना अच्छा ।। ~ शिवम् "शब्दांश"

कोशिश

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हर पेड़ी पर खरे उतर पाओ जरूरी नहीं, कोशिश इतनी करनी है जो किया जाए शिद्दत से किया जाए । ~ शिवम् शब्दांश

Life Balancing Rule

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हर बात का जवाब नहीं देना और हर जगह चुप नहीं रहना । ~ शिवम् "शब्दांश"

जवाब के उम्मीद से सवाल नहीं करते लाला!

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तुम जितना मर्ज़ी सवालों से घेरे रखो मुझे, यक़ीन मानो तुम्हें जवाब तो मिलने से रहा । ~ शिवम् "शब्दांश"

वक़्त से विपरीत मत चलो

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ख़ुद को खुद के लिए भी सहज न रख पाने वाले, "लोगों की सोच ही घटिया है" बोलकर, इसकी आड़ में "पाक साफ" बनते फिरते हैं ~ शिवम् "शब्दांश"

सब आप हो

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किसी को किसी से कोई फर्क नहीं पड़ता, बोलने वाले भी आप हो किसी से आपको कोई फर्क नहीं पड़ता, दिखाने वाले भी आप हो दुनिया ऐसी है वैसी है, चंद लफ्ज़ों में जो समेट देते हो जनाब ! ध्यान रहे, अपनी तरफ से कोई लगातार पहल ना करने वाले भी आप हो ~ शिवम् "शब्दांश"

मैं जो हूं

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मैने आजमाया, मैं जैसे भी बेहतर लग सकता था । मैने जाना, जैसा हूं उससे बेहतर नहीं लग सकता था ।। ~ शिवम् "शब्दांश"

हमें सब पता है "अहंकार"

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"हमें सब पता है" हमें कुछ जानने नहीं देता । कौन कैसा है, देखते ही समझ जाते हैं उसके भूत और भविष्य का अंदाजा तो यूंही चुटकी बजाते लग जाता है और बस यही से हमारे भविष्य पर अंधकार छा जाता है फुरसत में किसी पर कोई कयास अनायास लगाने से बेहतर होगा जनाब! के पहले अपने को सफ़ेद किया जाए । यूं किताब का आवरण पढ़कर कहानी का अंदाजा ना लगाया करो क्या पता कितनी अनमोल बातें छूट जाएं आपसे ।। ~ शिवम् शब्दांश

एकांत

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इश्क़ की पहली पतंग कटने के बाद, लंबे अरसे से, मेरा हर अन्य मौके पर, समीकरण बिठाने लग जाना, मुझे एकांत की ओर ले जा "पूर्व से बेहतरीन" बना रहा है ~ शिवम् शब्दांश

पापा

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"मां" को प्यार उसे खेल कर दिखा देने वाले लड़के, तरसते हैं अक्सर "पापा" को गले लगाने के लिए । ~ शिवम् शब्दांश

एक बात ;

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जहां होशियार बनकर काम न कर सको वहां होशियारी ये होगी के पागल बने रहो ~ शिवम् "शब्दांश

एक बात ;

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प्रकृति का हिसाब कभी गलत नहीं होता जनाब! धीरज रखें, संयम बरतें, हवा का रुख जरूर बदलेगा ।। ~ शिवम् शब्दांश

आज की शायरी

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के सफ़र हो या हमसफ़र, उसे मन मुताबिक चलने दिया जाए | "साथ रहे तो रहने दिया जाए, छोड़कर जाए तो जाने दिया जाए" || यहां कहानियां बनती बिगड़ती रहनी है, बेहतर होगा, बनने बिगड़ने दिया जाए | जो जिस हाल में है अपनी बात कहिए, आसरा नहीं देना, अपाहिज हो जाएगा | साहब! उसे, आप ही संभलने दिया जाए || ~ शिवम् "शब्दांश"

एक बात ;

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आपका जीवन बहुत कीमती है, आपके आसपास किस ईंट मसाले की दीवार बन रही है, इसका खास ख्याल रखें, वरना कब ढह जाए कोई भरोसा नहीं । "बाहरी दिखावे में मत जाना, दफ्ती के घर देखने में बेहद सुंदर लगते हैं।।" चमक कपड़ों और बातों की नहीं, इंसान के किरदार में होनी जरूरी है जितना जल्दी हो सके समझ जाओ दोस्त!... ~ शिवम् "शब्दांश"

आज की शायरी

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तू जो ख्यालों में बुन रहा है इधर देख, सुन रहा है? गलत है जो तू चुन रहा है ~ शिवम् शब्दांश

एक बात ;

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हर किसी को "कीमती" समझने वाला मैं हर किसी की "कीमत" समझने लगा हूं अब ~ शिवम् "शब्दांश"

एक बात ;

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के जो व्यक्ति हर बात का जवाब देने को आतुर रहता हो, जो काम से ज्यादा बात करता हो, जो सिर्फ "आपके हित की" बात करता हो, मुझे लगता है उनसे दूरी बना लेनी चाहिए । ~ शिवम् "शब्दांश"

आज की शायरी

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तुम ठहरने तो दो जनाब! कुनबे में अपने यकीन मानो इस "नमूने" को याद करोगे ~ शिवम् "शब्दांश"

एक किस्सा ऐसा भी : शिवम् "शब्दांश"

दंड से बचोगे तो दो गुना दंड मिलेगा 40 या 60₹ की जगह 100₹ मांगने पर, पॉल्यूशन नहीं रीन्यू करवाया उस डर से पेट्रोल पंप पर खड़े नहीं हुए क्योंकि अब दिल्ली शहर में हर पेट्रोल पंप पर कैमरा है जिनसे चालान कटता है , फिर एक जगह पॉल्यूशन सेंटर पर गाड़ी रोकी उनसे बोला भैया पॉल्यूशन बना दो तो बोलें अभी नहीं बनेगा, फिर पेट्रोल भी नहीं डलवाया और डर तो था ही चालान का, हिम्मत करके आगे बढ़े और गलती से भारी वाहन की लाइन पर चढ़ गए, पुलिस ने चिल्लाया लेकिन हम ठहरे गांव के तो बस डर के कारण गाड़ी भगा दी, हमें लगा पुलिस चेकिंग के लिए रोक रही है आगे कुछ ही दूर गए तो याद आया, एग्जिट प्वाइंट पर भी तो पुलिस होगी वहां, अब जरूर चालान कटेगा, पुलिस पता नहीं क्या बर्ताव करती है कितना परेशान करती है खैर फिर हिम्मत की और सोचा जो होगा देखा जाएगा, ये सोच आगे जाते ही जा रहे थे अचानक 90 की स्पीड पर 2 कील गाड़ी के पिछले पहिए में घुस गई, गाड़ी जोर से लहराई लेकिन ईश्वर ने बचा लिया अब हाइवे में बीचों बीच खड़े हैं, इधर उधर पुलिस और टायर पंचर ! क्या ही करते, गाड़ी से उतरकर, एक लंबी सांस ली, दोनो तरफ देखा और पलक झपकते अपने दोस्त के साथ बीच वाली लाइन से 3 फीट ऊंचे डिवाइडर को फांदकर फिल्मी स्टाइल में गाड़ी उठाई और अपनी लाइन पर कर लिया तब जाकर जान में जान आई, फिर 2 km पैदल चलकर ट्यूब बदलवाया, 350₹ लगा साथ ही पसीने से लतपथ रूम पहुंचे... ध्यान देने की बात ये है कि अभी भी पॉल्यूशन नहीं बना निष्कर्ष : चोरी कैसी भी हो, दंड भरना ही पड़ेगा गलत मानसिकता नहीं थी तो कुछ गलत करते हुए भी बच गए लेकिन एक सबक लिया, दुबारा से कभी भी कोई ऐसी गलती नहीं करेंगे, नियम के खिलाफ जाकर कुछ भी काम नहीं करेंगे ।। लोगों की नजरों से तो बच जाओगे, प्रकृति की नजरों से नहीं #शब्दांश

एक किस्सा ऐसा भी : शिवम् "शब्दांश"

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एक वाकया : अधूरी बात आज मैं सुबह तकरीबन 9 बजे तैयार होकर अपने रूम से हज़रत निज़ामुद्दीन रेलवे स्टेशन के लिए निकला, चूंकि मेरा एक दोस्त आया था और साथ ही ट्रेन में मेरी बाइक भी मंगवाई थी । लेकिन आज मुझे कुछ अजीब सा अनुभव हो रहा था, सुबह का सपना भी अजीब था और मेरी सुबह भी । रूम से निकल कर ऑटो पकड़ी, अब ऑटो में 8 female के बीच मैं अकेला लड़का था, अजीब ही लग रहा था... फिर नोएडा इलेक्ट्रॉनिक सिटी से मेट्रो ली, मैंने देखा मेरे सामने एक बहुत ही मासूम सी लड़की बैठी थी, पर दिल्ली में आकर कोई मासूम नहीं मालूम होता लेकिन उसे देखकर लगा , बताता हूं क्यों? क्योंकि वो फोन पर किसी से बात कर रही थी और कभी कभी मेरी तरफ देख लेती , उसकी नजरें देखकर ऐसा लग रहा था मानो मुझसे अपना दर्द बयां कर रही हों, मुझे कह रही हो के मेरे करीब बैठो और सुनो! कोई नही यहां मुझे सुनने वाला, मेरा तकलीफें जान लो ना, मुझे सुन लो ना कभी नज़रे झुकाती कभी मुझे देखती, ये सिलसिला चल ही रहा था के लगभग नोएडा सिटी सेंटर के आसपास उसने अपना चेहरा अपनी चुनरी से कवर कर लिया, मुझे लगा शायद मेरा उसकी तरफ गौर से देखना गलत था, मगर अगले ही क्षण मैने देखा उसकी आंखों में आसूं थे, आंखें पल भर में लाल हो गई, उसका सबसे छिपाकर रोना मुझे अजीब महसूस करवा रहा था, मैं देखता रह गया, तभी उसका मेट्रो स्टेशन आया शायद नोएडा सेक्टर 15, मैं तो उसे देखने में Busy था, लेकिन मुझसे रहा नहीं गया और जाने कहां से गांव के लड़के को शहर वालों जितनी हिम्मत आ गई और उस लड़की के साथ मैं भी उतर गया और मैं देखता हूं उसकी "सिसकियां" बढ़ती जा रहीं है उसका जोर जोर से रोने को दिल कर रहा था जैसे, और मैं ज्यों नजदीक गया मुझे लगा मानो मुझसे लिपटकर रोना चाह रही थी सिसकते हुए वो सीढ़ियों से नीचे उतरती जा रही थी, मैं उससे आगे होकर सीढ़ियों से नीचे उतरा, और पूछा "Exuse me" आप किसी problem में हो पता नहीं मेरे पूछने का तरीका गलत था या पता नही जो भी था, शायद मैं अनजान था.... और एक अनजान से मोहब्बत हो सकती है शादी हो सकती है लेकिन दोस्ती या फिर ऐसा रिश्ता जो मैं महसूस कर रहा था नामुमकिन सा था.. खैर उसका एक ही जवाब आया, नहीं! फिर मैं कर भी क्या सकता था, उसको रास्ता दिया वो रुकती तो शायद मैं कुछ और सवाल करता, उससे उसके दर्द जानता और शायद कोई सलाह देता, पर वो रुकी नहीं, और मुझमें इतनी हिम्मत नहीं थी कि मैं उसे रोककर और बातें करता फिर मैं वापस दूसरी मेट्रो पकड़कर अपने गंतव्य पर आगे बढ़ा, लेकिन उसे सोचता गया, ईश्वर से प्रार्थना किया की उसकी मदद करे । मुझे अक्सर लोगों को देखकर लगता है कोई परेशान है तो कम से कम हम बात कर लें, क्या पता वो कोई ऐसी परेशानी में हो, जिससे उसकी दुनिया ही न बचे, कम से कम हमारे बात करने से वो एक सुकून तो महसूस करेगा । मगर फिर याद आता है कि ये भी उसी दुनिया का हिस्सा है जहां किसी को किसी से कोई मतलब नहीं है "मतलब है तो सिर्फ अपने मतलब से" #शब्दांश

आज की शायरी

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वो एक महिला है जो हरदम अपने से ऊंचा कद देखती है एक तुम दरियादिल, हर एक फरियादी के हो जाते हो ~ शिवम् शब्दांश

"तुम" ~ शिवम् शब्दांश

"तुम्हारे पास आऊं और खामोश हो जाऊं" समझना मेरे यार! गहरे दर्द का अनुभव देखना मेरी छाती का फूलना जानना मेरे माथे की सिकन मेरी आंखों की ख़लिश सिमटते मुरझाए अधर बंद पड़ी दुकान से पेट की उम्मीद तुम जानना मेरे करोड़ों की मुस्कान जो तुमसे है तुम्हें चाहिए समझना! तुम्हारे सिवा मेरे पास कोई दूसरा कहां होगा, भला कौन चाहेगा मुझे, किसकी ज़िंदगी इतनी सस्ती हर एक का अपना बड़ा दाम मालिक करे वो हर एक शाम सभी की रंगीन मगर तुम मेरे लिए एक आसरा बनाना अपने जेहन में सपने संजोना किसी घर चलेंगे लेने प्रेम की चुस्कियां लाज का आलेख वक्त की तिज़ोरी मोह की मंज़िल से उतरेंगे पहली सीढ़ी मिलेगी भावुक हमे रोकेगी पास अपने चाहेगी हमारे साथ चलना बदलना रस्ता अपना चाहत जो चाबुक की डर छिपा रखी थी जगेगी चाहेगी फिर एक सैर पर जाना साथ हमारे कोई चाह रख तलाश में मन मेरा परेशान होगा कि उसका हाथ न छूटे, जग रूठे सब रूठे चाहे हर जर टूटे पर यारा! तेरा मेरा कभी "साथ" न छूटे ।